बात, लगभग 46-47 वर्षो पहले की है। जब हमारी जाति के ज्यादातर लोग, शैक्षणिक, समाजिक, राजनैतिक और आर्थिक रूप से बिल्कुल निचले पायदान पर थे। उस समय, छः महीने की उधारी पर, समाज के अन्य जातियों का कार्य करते थे। उस समय हमारे बुज़ुर्ग, जो कम पढ़े-लिखे थे, उनकी जागरूक चेतना के कारण, एक जन आन्दोलन चलाई जा रही थी। जिसका असली मकसद लोहार कल्याण के लिए छःमहीनवा उधारी बन्द कर शैक्षणिक, सामाजिक, राजनैतिक क्षेत्र में तथा आर्थिक विकास के लिए लोहार समाज को ऊंचा स्तर तक पहुंचाना था।
उस समय बुजुर्ग के द्वारा बताई गई बात को नौजवान ध्यान से सुनते थे और साथ ही अगर सलाह देने की बात आती थी तो अनुशासन के साथ अपनी बात अग्रणी लोग के सामने पेश करते थे और आसानी से सहमति बन जाती थी तथा भविष्य का कार्यक्रम तय कर, उस पर पूरा समाज अग्रणी लोग का समर्थन कर सहयोग करता था। अतीत और वर्तमान परिवेश मे कितना अन्तर है जो आपके सामने है। यह उन बुजुर्गो और नौव्जवानो की देन है। जिसका फलाफल हमारे सामने है। बीजारोपण करने वाले बुजुर्ग तो स्वर्ग सिधार गए परन्तु उस समय के कुछ सक्रिय नौजवान आज के बुजुर्ग के रूप मे जीवित है। जिसमे कुछ आज भी समाज के लिए किसी न किसी रूप से सक्रिय है।
लगता है हम आर्थिक, शैक्षणिक, सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर किसी ऊंचाई तक पहुंचने के बावजूद, हमारा शिष्टाचार, संस्कार और सालीनता घटती चली गई। जिसके कारण कोई भी किसी की बात सुनने को तैयार नही है और हमारी वर्तमान की लड़ाई एक अनिश्चितता की मोड़ पर खड़ी है।कहा गया हैं कि किसी एक के पिछे उसका पूरा समाज होता है तो एक कारवां के रूप मे सभी समुदाय बड़ा दिखता है परन्तु सभी लोग कतार मे आगे खड़ा होने की होड़ लगा दे तो न कारवां बनेगा और न एक बड़ा होगा और न पूरा समाज।
इसलिए पूरा समाज के लोगो से करवद्ध प्रार्थना है कि अपनी मानसिकता मे बदलाव कर एकजुट होकर समस्या का समाधान करने की कृपा करे। धन्यवाद!
– ब्रज बिहारी शर्मा, सेवा निवृत शिक्षक,ग्राम +पोस्ट -दुलमा, थाना- मधुबन, जिला- पूर्वी चम्पारण