उसे मालूम नही – गंगा शाह आशुकवि | Use Malum Nahi By Ganga Shah Aashukavi
हथोड़ा चलाते चलाते
उसकी नाज़ुक कलाइयाँ
कब मजबूत हुई
गरम भट्टी की ताप से
कब उसके
सफ़ेद बाल उग आए
उसे मालूम नहीं।
उसे मालूम नहीं
उसकी अडसाल से
कितनी मुर्तियां
मंदिरों में स्थापित हुई,
उसे मालूम नहीं
उसके हाथों से बनायी मूर्ति
माटी के मोल खरीदकर
सादियो से पैसे कामने
का जरिया बन गया।
उसे मालूम नहीं
उसकी रीढ़ की हड्डी
उभरी हुई है,
और पीठ के नीचे
घुट्ने तक का कापड़ा
जो गुप्ताँग़ को
छिपाने के लिए है
वह फटा हुआ है।
उसे मालूम ही नहीं उसकी
घांस-फूस की झोपड़ी के लिए
सरकारी आवास के पैसे
कितनी बार खा गये
गांव का प्रधान
उसे यह भी मालूम नहीं
उसके नाम पर आया
शौचालय निर्माण की आर्थिक राशि
किसने खा ली
वह तो है शिल्पी!
शिल्पकला में तन्मय
नहीं मालूम, नहीं मालूम उसे
होता है क्या आय-व्य्य।
उसे मालूम ही नहीं
उसके नाम पर
राजनीति चमकाने
आ जाते हैं कुछ
उसी के बिरादरी के
बरसाती मेंढक चुनाव के नजदीक
वह उनके बहकावे में आकर देता है
वोट यह आशा
लेकर कि अपने
जाति का नेता करेगा उसका उत्थान।
– गंगा शाह आशुकवि
देहरादून उत्तराखंड