वो शिल्पकार लोहार है – गंगा शाह आशु कवि
सामने विस्तृत हिमालय पड़ा अपार है,
वो शिल्पकार लोहार है,
वो शिल्पकार लोहार है॥
एक घास की झोपड़ी के
नीचे डेरा डालकर,
हो रहा न तनिक विचलित,
मुश्किलों को पालकर।
जी रहा इस ज़िंदगी को,
शोषण उत्पीड़न
रिवाज निज मानकर,
हो रहें हैं नत मनुज
इतिहास उसका जानकर।
सह रहा है जो ये सब,
वो हरिप्रसाद टम्टा का अवतार है,
वो शिल्पकार लोहार है,
वो शिल्पकार लोहार है॥
दे रहा आश्रय वो अंबर,
नीली छत्र-छाया तानकर,
लेता परीक्षा कड़ी भास्कर,
भट्ठी-सी धरती को तपाकर।
करुण क्रंदन कर रहे शिशु,
भूख से दो बिल-बिलाकर,
ले रही निःश्वास माता,
भूखे ही बालक को सुलाकर।
झेलता जाता है सब,
न कर रहा गुहार है,
वो शिल्पकार लोहार है,
वो शिल्पकार लोहार है॥
लेखक: – गंगा शाह आशु कवि (उत्तराखंड)