क्या आप जानना चाहते हैं कि “लोहार वंश की इतिहास – Lohara Dynasty History, लोहार वंश का उत्पत्ति कैसे हुई? लोहार वंश के संस्थापक कौन थे? लोहार वंश के राजा, लोहार वंश के अंतिम शासक कौन था? तो बिल्कुल सही आर्टिकल पढ़ रहे हैं क्योंकि इस आर्टिकल में आपको लोहार वंश का इतिहास से संबंधित जानकारी मिलने वाली है। अतः इस आर्टिकल को एक बार अंत तक जरूर पढ़ें। आगे पढ़ें:-

लोहार राजवंश | Lohara Dynasty
लोहार राजवंश – Lohara Dynasty: लोहार वंश (Lohara Vansh) भारत में लोहार के शासकों कश्मीर से खासा जनजाति (Khasa Tribes), के उत्तरी भाग में भारतीय उपमहाद्वीप का एक राजवंश था। जिसका शासन सन 1003 से 1155 ई. तक 150 वर्षो से अधिक कश्मीर पर चला। प्राप्त साक्ष्यो और कश्मीर के राजवंशों के बारे में 12 वीं शताब्दी के मध्य में रचित कल्हण की राजतरंगिणी के अनुसार लोहार वंश का इतिहास गौरवमयी रहा हैं
इस आर्टिकल में हम जानेंगे- लोहार वंश, लोहार वंश के संस्थापक, लोहार वंश की उत्पत्ति, लोहार वंश की राजधानी, लोहार वंश का इतिहास, लोहार वंश के राजा के बारे में – जो विभिन्न पुस्तकों, विकिपीडिया एवं इंटरनेट पर मिली जानकारी के अनुसार संक्षिप्त जानकारी हैं। विस्तृत जानकारी के लिए राजतरंगिणी पढ़े।
लोहार वंश का उत्पत्ति एवं इतिहास
12वीं शताब्दी में रचित राजतरंगिणी अनुवादित सर मार्क ऑरेल स्टीन के अनुसार, लोहार के प्रमुखों का परिवार खासा जनजाति (Khasa Tribe) से था। लोहार वंश का केन्द्र लोहारकोटा नामक एक पहाड़ी-किला था, जिसका सटीक स्थान एक लंबे समय तक अकादमिक बहस का विषय रहा है।
कल्हण के एक अनुवादक स्टीन ने कुछ सिद्धांतों पर चर्चा की और निष्कर्ष निकाला कि यह पश्चिमी पंजाब और कश्मीर के बीच व्यापार मार्ग पर पहाड़ों की पीर पंजाल क्षेत्र में स्थित है। इस प्रकार, यह कश्मीर में ही नहीं बल्कि लोहार के राज्य में था, जो सामूहिक रूप से लोहारीन के नाम से जाने जाने वाले बड़े गाँवों के समूह के आसपास केंद्रित था, जो खुद घाटी द्वारा साझा किया गया एक नाम था जिसमें वे स्थित थे और एक नदी जो इसके माध्यम से चलती थी। लोहार साम्राज्य संभवतः पड़ोसी घाटियों में विस्तारित हुआ।
सिंहराज नामक लोहर के राजा की एक बेटी दिद्दा ने कश्मीर के राजा, सेनगुप्ता से शादी की थी, इस प्रकार दोनों क्षेत्रों को एकजुट किया। इस काल मे अन्य समाजों की तुलना में, कश्मीर में महिलाओं को उच्च सम्मान दिया जाता था और जब 958 में सेनगुप्ता की मृत्यु हो गई, तो महारानी दिद्दा ने अपने छोटे बेटे, अभिमन्यु द्वितीय के लिए राज-प्रतिनिधि (शासनकारी) के रूप में सत्ता संभाली। 972 में अभिमन्यु की मृत्यु के बाद, उसने अपने बेटों, नंदीगुप्त, त्रिभुवनगुप्त और भीमगुप्त के लिए एक ही कार्यालय का प्रदर्शन किया। 980 में भीमगुप्त की मृत्यु के साथ वह अपने आप में शासक बन गई।
बाद में महारानी दिद्दा ने कश्मीर में अपना योग्य उत्तराधिकारी होने के लिए अपने भतीजों में से, संग्रामराज को गोद ली, जो उसके भाई लोहार के शासक उदयराज के पुत्र था। इस निर्णय से जब वर्ष 1003 में वृद्ध महारानी अपने संघर्षों के दृश्य से विदा हो गई, तो कश्मीर का शासन नए राजवंश, लोहार वंश का उदय हुआ।
लोहार वंश के संस्थापक
लोहार वंश के संस्थापक संग्रामराज थे। संग्रामराज (1003-1028 A.D.) बड़े न्याय प्रिय उदारवादी राजा थे। उनके शासन अवधि में प्रजा सुख-चैन से दिन व्ययतीत कर रही थी। किसी भी प्रकार का अभाव एवं विकार लोगों में नहीं था। संग्रामराज कश्मीर के खिलाफ महमूद गजनवी के कई हमलों को खदेड़ने में करने में सक्षम रहे, और उन्होंने मुस्लिम हमलों के खिलाफ शासक त्रिलोचनपाल का समर्थन भी किये।
अनन्त : (1028-1063 A.D.) संग्रामराज के बाद अनन्त को लोहार वंश का राज-सिंहासन मिला। जिन्होंने अपनी वीरता, धीरता और शौर्यता के बल पर अपने शासनकाल में सामन्तों के विद्रोह को कुचला तथा अपने शासन क्षेत्र का विस्तार भी किये। शासनसत्ता सुचारू रूप से कायम करने में सफल रहे। उसके प्रशासन में उसकी पत्नी रानी सूर्यमती सहयोग करती थी।
रानी सूर्यमती में कुशल रानी के गुण विद्यमान तो था ही साथ साथ उनमे एक कुशल राजनीतिज्ञ एवं नेतृत्वकर्ता के गुण भी कूट कूट कर भरे थे। वह शासन के सभी महत्वपूर्ण मुद्दों पर बराबर विचार-विमर्श करती थी। रानी के द्वारा प्रतिपादित किया गया नियम-कानून अकाट्य सिद्ध होता था। यहां तक कि स्वंम राजा अनन्तराज और उनके मंत्रिमंडल भी रानी सूर्यमती के द्वारा बनाये गए नियम-कानून में कोई कमी नही निकाल पाते थे। उनके द्वारा बनाये गए नियम-कानून ज्यों का त्यों लागू कर दिया जाता था। राजा अनन्त के पुत्र कलश थे जो राज्य का उत्तराधिकारी बने।
हर्ष : कलश का पुत्र हर्ष का नाम इस दृष्टि से उल्लेखनीय हैं कि वह स्वयं महाविद्वान, प्रखर बुद्धि, दार्शनिक, कवि एवं कई भाषाओं तथा विद्याओं का ज्ञाता थे। कल्हण राजा हर्ष के आश्रित कवि था। हर्ष को कश्मीर का ‘नीरो’ भी कहा जाता हैं। उसके शासन काल में कश्मीर में भयानक अकाल पड़ा था। उसके अत्याचारपूर्ण कार्यो से त्रस्त होकर उत्सल एवं सुस्सल नामक भाईयों ने विद्रोह कर दिया। राज्य में आन्तरिक अशान्ति के कारण हुए विद्रोह में लगभग 1101 ई. में हर्ष के पुत्र भोज एवं हर्ष दोनों की हत्या कर दी गयी।
लोहार वंश के राजा
राजतरंगिणी में लोहार वंश के कुछ राजाओ का नाम निम्नलिखित हैं
- संग्रामराज [SAMGRAMARAJA]
- अनन्त [ANANTA]
- कलश [KALASA]
- हर्ष [HARSA]
- उकल [UCCAL]
- सुस्सल [SUSSALA]
- शिक्षाचर [BHIKSACARA]
- जयसिंह (लोहारवंशी) [JAYASIMHA]
लोहार वंश के अंतिम शासक
जयसिंह (1128 -1155 ई.) : लोहार वंश के अंतिम शासक जयसिंह (लोहारवंशी) थे। जिन्होंने अपने युद्ध कला कौशल से यूनानी मूल के यवनों को परास्त किया तथा राज्य की सीमा विस्तार शुरू किया। जयसिंह (लोहारवंशी) कल्हण की राजतरंगिणी का अन्तिम शासक थे और उसी समय में राजतरंगिणी पूर्ण हुई।
इसे भी पढ़े:
महारानी दिद्दा – लोहार वंश की बेटी के चतुरबुद्धि के आगे अच्छे-अच्छों ने घुटने टेकने पर हुए थे मजबूर
आशा है इस आर्टिकल में दी गई जानकारी – लोहार वंश की इतिहास – Lohara Dynasty History, लोहार वंश का उत्पत्ति कैसे हुई? लोहार वंश के संस्थापक कौन थे? लोहार वंश के राजा, लोहार वंश के अंतिम शासक कौन था? आपको पसंद आया हो तो अपने सभी सोशल मीडिया फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर, टेलीग्राम, परिचित, रिस्तेदारों और दोस्तों को शेयर करें ताकि लोहार वंश – Lohara Dynasty का इतिहास दुनिया तक पहुंचे। नीचे आपको सभी शेयर बटन मिल जाएगा। धन्यवाद