आदिवासी और प्रकृति एक-दूसरे की परछाई है। अगर प्रकृति को जिंदा रखना है तो आपको आदिवासीयों को जिंदा रखना होगा और आदिवासीयों को जिंदा रखना है तो उन्हें प्रकृति के साथ ही जीने देना होगा।
दोस्तों, 21वीं सदी में हम ऐसे दैर से गुजर रहे कि जिस प्रकृति ने हम सब को बनाया उसी प्रकृति को आज कुछ लालची लोगो ने व्यापार बना दिया है।
प्रकृति में ऐसी कोई वस्तु नहीं जिसका मानव ने व्यापार न किया हो यहाँ तक हवा और पानी का भी आज व्यापार हो रहा हैं।
उसका यही लालच आज समस्त मानव जाति एवं सजीव प्राणी के लिए विनाशकारी बनकर पूरी दुनिया में करोड़ो लोगों की जान ले चुका है और ले रही है।
लेकिन प्रकृति संतुलन बनाये रखने के लिए हर चीज पर नजर रखती है – एक तरफ प्रकृति विनाशकारी है तो दूसरी तरफ प्रकृति रक्षक भी है।
इस आर्टिकल में एक ऐसे प्रकृति रक्षक के बारे में जानेंगे जो वास्तविक में सैलूट के काबिल है और प्रेरणा भरी जीता जागता हैं। जिनका तस्वीर सोशल मीडिया और इंटरनेट पर तेजी से वायरल हो रहा है।
तस्वीर में जो नंगे पैर भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविन्द (Ramnath Kovind) जी से भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री ले रही हैं – यह कर्नाटक की 72 वर्षीय आदिवासी महिला तुलसी गौड़ा (Tulsi Gowda) ‘जंगलों की एनसाइक्लोपीडिया’ के रूप में प्रख्यात हैं।

इनको यह पुरस्कार प्रकृति का रक्षण करने के लिए दिया गया है। इन्होंने करीब 1 लाख से अधिक पेड़ों को लगाया है और उसका जतन किया है। इसलिए इन्हें 08 नवंबर 2021 को भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया जा रहा है।
उनके पद्मश्री लेने पहुंची तो बदन पर पारंपरिक पोशाक धोती थी और नंगे पैर थीं। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री श्री अमित शाह भी उनकी उपलब्धि का सम्मान करते हुए उन्हें नमस्कार किया।
सोशल मीडिया पर उनकी तस्वीर जनता में खूब पसंद हो रहा है और पर्यावरण की सुरक्षा में उनके योगदान की सराहना कर रही है।
इससे पहले उन्हें ‘इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड’, ‘राज्योत्सव अवॉर्ड’ और ‘कविता मेमोरियल’ जैसे कई अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।
उन्होंने कभी स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं की, लेकिन पौधों और जड़ी-बूटियों की विविध प्रजातियों पर उनके विशाल ज्ञान रखती है इसलिए उन्हें ‘जंगलों की इनसाइक्लोपीडिया’ के रूप में जाना जाता है।
आगे पढ़िए – राज वसावा (आदिवासी एक्टिविस्ट) साहब आदिवासी दर्शन पर लिखते है:-
प्रकृति का जतन करना आदिवासी समुदाय (Tribal Community) का संस्कृति है। इसलिए ही दुनिया के सभी देशों के संगठन युनो ने आदिवासी जिवन शैली अपनाने के लिए अपील की है।
प्रकृति की रक्षा और जतन करने के लिए पढे-लिखे होना जरूरी नहीं है। बस आपके दिल मे भावना होनी जरूरी है।
आदिवासी और प्रकृति एक-दूसरे की परछाई है। अगर प्रकृति को जिंदा रखना है तो आपको आदिवासीयों को जिंदा रखना होगा और आदिवासीयों को जिंदा रखना है तो उन्हें प्रकृति के साथ ही जीने देना होगा।
केंद्र सरकार जितना जल्दी यह समझ ले उतना ही अच्छा भारत के लिए होगा। विकास की अंधी दौड़ मे लाखों आदिवासीयों को जंगल, पहाड, नदीयो से बेदखल किया जा रहा है। जो की बहुत दुख की बात है। जिसका नतीजा सिर्फ और सिर्फ बर्बादी ही है।
तुलसी गोवडा जी को पद्मश्री पुरस्कार मिलने पर जोहार बधाईयाँ एवं शुभकामनाएं।
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