Maharani Didda Kashmir Ki Yoddha Rani – जहाँ आज 21वीं सदी में हमारे देश भारत में घर के बाहर, घर के बाहर तो दूर घर के अंदर भी महिला सुरक्षा नही एक मुद्दा हैं, वही आज से लगभग 1200 वर्ष पहले 10वीं सदी में एक ऐसी महिला थी, जो जन्म से दिव्यांग थी लेकिन जिसके चतुरबुद्धि के आगे अच्छे-अच्छों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया हैं, जो 45000 सैनिकों के आगे सिर्फ 500 सैनिकों के साथ पहुंची और सिर्फ 45 मिनट में पासा पलट दिया, सोमनाथ मंदिर के लुटेरा, देश के कई शहरों को तहस नहस करने वाला खूंखार आक्रमणकारी मेहमूद गज़नवी को एक बार नही दो दो बार भारत में प्रदेश से रोकी और युद्ध मे धूल चटा कर हराया, पुरुषवादी मानसिकता से बनाये गए कुप्रथा के नियम तोड़कर अपनी खुद के नियम बनाए, अखंड भारत की सीमाओं को न सिर्फ बचाया बल्कि जनता को एक अच्छा राज्य भी दिया, उस महिला महानायक वीरांगना का नाम हैं – महारानी दिद्दा – Queen Didda। महारानी दिद्दा वही महिला महानायक वीरांगना हैं जिसके पति ने अपने नाम के आगे पत्नी दिद्दा का नाम लगाया और दिद्क सेनगुप्ता के नाम से जाना गया। दुर्भाग्य हैं इस देश की की महारानी दिद्दा की कहानी सिर्फ इतिहास के पन्नो में दब कर रहा गया, कभी पाठक्रम में पढ़ाया नही गया जिससे प्रेरणा देश और दुनिया को मिले। आइये जानते हैं जानते हैं आखिर Queen Didda – महारानी दिद्दा कौन हैं?
यह आर्टिकल राजतरंगिणी के अनुवादित सर मार्क ऑरेल स्टीन, आशीष कॉल के ‘दिद्दा द वैरियर क्वीन ऑफ कश्मीर – Didda – The Warrior Queen of Kashmir” हिंदी संस्करण में “DIDDA : Kashmir Ki Yoddha Rani – दिद्दा : कश्मीर की योद्धा रानी” पुस्तक के समीक्षा इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार हैं।

महारानी दिद्दा कौन थी? | Maharani Didda
Queen Didda – महारानी दिद्दा: लोहार वंश के राजा सिंहराज के खूबसूरत पुत्री थी। 12वीं शताब्दी में रचित राजतरंगिणी अनुवादित सर मार्क ऑरेल स्टीन के अनुसार, लोहार के प्रमुखों का परिवार खासा जनजाति (Khasa Tribe) से था। Lohara Dynasty – लोहार वंश का केन्द्र लोहारकोटा नामक एक पहाड़ी-किला था। Didda – दिद्दा जन्म से दिव्यांग थी, वह अपंगता को कमजोरी नही अपना ताकत बनाने की तैयारी में जुट गईं। युद्ध कला से लेकर हर कला में निपुणता हासिल की और आगे चल कर मध्यकालीन विश्व में इतिहास में सबसे लंबे समय तक शासन किया। धीरे-धीरे वह बड़ी होने लगीं और जब बड़ी हुई तो आखेट के दौरान उनकी मुलाकात कश्मीर के राजा सेनगुप्ता से हुई। राजा सेनगुप्ता और दिद्दा की शादी हुई, जहाँ पति का प्यार, मान सम्मान, पुत्र रत्न तो मिला ही, साथ ही साथ राज काज में भी भागीदारी निभानी शुरू कर दी। इस भागीदारी के सम्मान में राजा सेनगुप्ता ने अपनी पत्नी दिद्दा के नाम पर सिक्का जारी किया। वो ऐसा पहला राजा बने जो अपनी पत्नी के नाम से जाना गया। उन्हों अपने नाम के आगे पत्नी दिद्दा का नाम भी लगाया और दिद्क सेनगुप्ता के नाम से जाना गया। [लोहार वंश का इतिहास यहाँ पढ़े]
महारानी दिद्दा की संघर्ष
जब 958 में आखेट के दौरान सेनगुप्त की मृत्यु हो गई। इस घटना से दिद्दा की ज़िन्दगी दौराहे पर खड़ी थी क्योंकि उस समय सती प्रथा जैसे कुप्रथा थी। महारानी दिद्दा ने मां की जिम्मेदारी निभाने और बेटे को राज-पाठ संभालने लायक बनाने का और राज्य सुरक्षित हाथों में देने का निर्णय लिया। पुरुषवादी मानसिकता से बनाये गए कुप्रथा के नियम तोड़कर अपनी खुद के नियम बनाए और सती होने से इनकार कर दिया।
महारानी दिद्दा की वीरतापूर्ण युद्ध
महारानी दिद्दा की कहानी दिव्यांग से लेकर आगे चलकर शासन की बागडोर अपने हाथों में संभालने, कई युद्ध करने और युद्ध जीतने के लिए गुरिल्ला तकनीक इजात करने के प्रसंग से होती हुई उस दिलचस्प मोड़ से गुज़रती है जहां संभवतः विश्व कि प्रथम कमांडो सेना, एकांगी सेना के बनने का घटनाक्रम वर्णित है। जनता से जुड़ना, सारे एशिया के साथ व्यापार और ईरान तक फैले, अखंड भारत की सीमाओं की रक्षा के लिए रणनीति निर्माण लेने का इतिहास हैं। सोमनाथ मंदिर के लुटेरा, देश के कई शहरों को तहस नहस करने वाला खूंखार आक्रमणकारी मेहमूद गज़नवी को एक बार नही दो दो बार भारत में प्रदेश से रोकी और युद्ध मे धूल चटा कर हराया। जिसके बाद उसने रास्ता बदला और गुजरात के रास्ते भारत में प्रवेश किया।
45000 सैनिकों के आगे महारानी दिद्दा सिर्फ 500 सैनिकों के साथ पहुंची और सिर्फ 45 मिनट में पासा पलट दिया। महारानी इतनी तीक्ष्णबुद्धि (जिसकी बुद्धि बहुत तेज हो, कुशाग्र बुद्धिवाला) थी कि वह चंद मिनटों में बाजी पलट दिया करती थी। आज जिस सेना के कमांडो और गुरिल्ला वार फेयर पर दुनिया चालाकी की जंग लड़ती है वह इसी दिव्यांग महारानी दिद्दा की देन हैं। Queen Didda – महारानी दिद्दा कई युद्ध लड़ी और युद्ध जीत हासिल की और और 50 वर्षों तक शासन किया। एक सशक्त राज्य का बागडोर एक काबिल राजा के हाथों में सुनिश्चित का तरीका भी महारानी दिद्दा का अपना अलग था।
महारानी दिद्दा की कहानी इतिहास में
कश्मीर की महारानी दिद्दी के चतुरबुद्धि ने आगे अच्छे-अच्छों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। उन्होंने अपनी शर्तों पर अपने बनाये नियमों के अनुरूप पुरुषवादी और पितृसत्तात्मक मानसिकता को न सिर्फ चुनौती दी बल्कि कई मौकों पर ठेंगा भी दिखाया। जब राजा और महाराजा हार जाते तो अपनी मर्दानगी छुपाने के लिए महारानी दिद्दा को चुड़ैल कहना शुरू किया और फिर दिद्दा चुड़ैल रानी के नाम से प्रसिद्ध हुई। ऐसी थी वीरांगना कश्मीर की महारानी दिद्दा। जिसके बारे में न तो बहुत कुछ पाठ्यक्रम में पढ़ा गया हैं और न हीं कुछ सुनाया गया हैं।
महारानी दिद्दा की इतिहास की जीवंत पुस्तक
महारानी दिद्दा की कहानी के इतिहास को जीवंत किया -‘दिद्दा द वैरियर क्वीन ऑफ कश्मीर – Didda – The Warrior Queen of Kashmir’ लेखक – अशीष कॉल, हिंदी संस्करण – DIDDA : Kashmir Ki Yoddha Rani – दिद्दा : कश्मीर की योद्धा रानी”
Queen of Kashmir – DIdda – कश्मीर की महारानी दिद्दा की कहानियों के इतिहास के पन्नों भले ही धुंधली हैं लेकिन आशीष कॉल ‘दिद्दा द वैरियर क्वीन ऑफ कश्मीर – Didda – The Warrior Queen of Kashmir’ के बहाने इसे जीवंत कर दिया हैं और भारतीयों को बार-बार गर्व करने का मौका दिया है। आशीष कौल ने इस पुस्तक को हिंदी में भी “DIDDA : Kashmir Ki Yoddha Rani – दिद्दा : कश्मीर की योद्धा रानी” का प्रकाशन किया है। इस किताब को जब जब पढ़ा जाएगा तब तब सवाल पूछा जाएगा कि ऐसी तीक्ष्णबुद्धि वाली महिला महानायक वीरांगना महारानी दिद्दा (Queen Didda) जिसमें वीरता, पराक्रम, त्याग कूट कूट कर भरा था, जिसने अपनी शारीरिक अपंगता को कमजोरी नही अपना ताकत बनाई। युद्ध कला से लेकर हर कला में निपुणता हासिल की और मध्यकालीन विश्व में इतिहास में सबसे लंबे समय तक शासन किया की इतिहास में ज़िक्र इतना धुंधला क्यों रहा हैं? किसी को दिखा क्यों नहीं दिया? निश्चय ही पुरुषवादी और पितृसत्तात्मक मानसिकता ने उस वीरांगना से मौके मौके पर मिली हार के बदले में उसकी वीरता की गाथा ही इतिहास से इस कदर ओझल कर दी कि वो गुम हो जाए लेकिन 1200 वर्षो बाद फिर से उस इतिहास के पन्ने खुला हैं, जो दुनिया भर की महिलाओं के लिए प्रेरणादायक साबित होगा। सत्य कभी छुपता नही एक दिन न एक दिन सामने जरूर आता हैं।
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